दशामाता व्रत की कथा || Dasha Mata Vrat Katha
दशामाता व्रत की कथा
दशामाता व्रत की शुरुआत श्रावण शुक्ल पक्ष के पहले दिन से होती है। दशामाता का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने घर की दशा सुधारने और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से घर की दशा में सुधार होता है, दरिद्रता दूर होती है, और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। इस दिन महिलाएं दशा माता की पूजा करती हैं, पीपल वृक्ष की परिक्रमा करती हैं, और दशा माता का डोरा गले में धारण करती हैं।
दशामाता व्रत की कथा - 1
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एक साहूकार था, उसके परिवार में पांच बेटे, उनकी बहुएं और एक बेटी थी। बेटी विवाहित थी लेकिन अभी तक उसका गोना नहीं हुआ था, इसलिए वह भी अपने माता-पिता के साथ ही रहती थी। एक दिन साहूकार की पत्नी अपने लिए दशामाता का डोरा ले रही थी तो उसकी बहुओं ने भी डोरे ले लिए और उन्होंने अपनी सास से पूछा कि क्या दीदी के लिए भी डोरा लेना है तो सास ने तुरंत ही कह दिया कि हाँ उसके लिए भी डोरा लेना है। इस पर बहुओं ने कहा कि माँजी दीदी की तो कुछ दिनों में विदाई होने वाली है। यदि यह विदाई व्रत से पहले ही हो गई तो क्या होगा ? इस पर सास ने उत्तर दिया कि यदि ऐसा हुआ तो मैं व्रत का सारा सामान उसके साथ ही रख दूंगी, जिससे वह अपने ससुराल में पूजा कर लेगी।
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कुछ दिनों बाद उसका पति उसका गोना कराने के लिए ससुराल आ पहुँचा, तो माँ ने अपनी बेटी को विदा कर किया और साथ में उसके पूजा का सारा सामान भी रख दिया, जिससे उसकी बेटी अपने ससुराल में दशामाता की पूजा पूरी विधि-विधान से कर सके। इसके बाद साहूकार की बेटी अपने पति के साथ अपने ससुराल पहुंची और उसे मुँह दिखाई की रस्म के लिए घर के आँगन मैं चटाई बिछाकर बैठा दिया गया। कुछ समय बाद आस-पड़ोस की महिलाएँ मुँह दिखाई की रस्म के लिए आई। कोई नई बहु की सुन्दरता की तारीफ कर रहा था तो कोई उसके कपड़ो की तो कोई उसके गहनों की। इतने में एक महिला की नज़र उसके गले में बंधे डोरे पर पड़ गई, तो उसने तुरंत ही कह दिया कि बहु की माँ तो कोई टोने-टोटके वाली है। जैसे ही यह बात दूसरी औरतों ने सुनी तो वे सभी बहु के गले में पड़े डोरे को देखने लगे और अब तो सभी महिलाएँ बहु के गले में पड़े डोरे की ही बातें करने लगी और अपने-अपने विचार प्रकट करने लगी। शाम होते-होते तो घर की सभी महिलाएँ जैसे सास, ननद, देवरानी, जेठानी सभी उसी डोरे की चर्चा करने लगी और बहु के घर वालों को उल्टा-सीधा कहने लगी। सभी के मुँह से डोरे के बारे में सुनते-सुनते बहु से रहा न गया और उसने परेशान होकर अपने गले में बंधे डोरे को गले से उतारा और आग में डाल दिया।
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कुछ देर बाद डोरा जल गया और डोरे के जलते ही सारे घर में आग की लपटें फैल गई। घर में रखा सब धन-धान धूं-धूं कर जलने लगा। घर के सभी छोटे-बड़े अपने प्राण बचाकर घर से बाहर भाग गए और अंत में घर में केवल नई बहु और उसका पति ही रह गया। चूँकि घर का सारा सामान जल गया था, इसलिए घर की ऐसी हालत हो गई कि घर में न तो खाने के लिए कोई अन्न था और न ही पहनने के लिए कोई कपड़े। अब दोनों पति-पत्नी गांव छोड़कर रोजगार की तलाश में दूसरे गाँव के लिए निकल गए। अंत में चलते-चलते वे उसी गांव पहुँच गए जिस गाँव की वह लड़की थी। लड़की ने अपने पति से कहा कि तुम यहाँ इस लोहार के यहाँ काम के लिए पूछो और मैं भी कोई काम ढूंढती हूँ। इतना कहकर वह वहां से चली गई और एक कुँए के पास जाकर बैठ गई।
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गांव की सभी स्त्रियां उस कुंए पर पानी भरने आती थी। कुछ समय बाद उस लड़की की भाभियां भी वहां पानी भरने आई परंतु उन्होंने अपनी ननद को नहीं पहचाना और वे उससे बोली कि तुम तो किसी भले घर की लड़की लगती हो, तुम यहाँ बेठी-बेठी क्या सोच रही हो। इस पर उसने कहाँ कि मैं इस गाँव की नहीं हूँ, मैं तो यहाँ काम की तलाश में आई हूँ, कुछ काम हो तो बताओ। इस पर उसकी बड़ी भाभी बोली कि हमारी ननद की शादी हो गई है और वो अपने ससुराल चली गई है। तुम हमारे बच्चों की देखभाल कर सको तो बताओ। इस काम के लिए वह तुरंत ही तैयार हो गई। इसके बाद उस लड़की की सभी भाभी अपने घर आ गई और घर पर आते ही वे अपनी सास से बोली कि कुँए पर एक लड़की बैठी है, हमारे कहने पर वह हमारे घर रहकर हमारे बच्चों की देखभाल करने को राजी हो गई है, अगर आप कहें तो हम उसको अपने घर पर रख लें ?
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इस पर सास ने कहा कि खुशी से रख लो, परंतु तुम लोग आपस में झगड़ा मत करना, इस पर सभी बहुओं ने हामी भर दी। वे वापस कुँए पर गई और उस लड़की को अपने साथ अपने घर पर ले आई। अब वह लड़की अपने भाभियों के बच्चों की देखभाल करती, उनके साथ खेलती और इस प्रकार वह अपना और अपने पति का जीवन निर्वाह करने लगी। कुछ दिनों बाद पुनः दशामाता का डोरा लेने का समय आया तो सभी बहुओं ने अपनी सास के कहने पर डोरा ले लिया और उन्होंने अपनी सास से पूंछा कि क्या इस लड़की के लिए भी डोरा लेना है, तो सास ने तुरंत ही कह दिया कि हाँ। इस पर बहुओं ने अपनी सास को कहा कि इसी प्रकार आपने दीदी के लिए भी डोरा ले लिया था, परन्तु वह दशामाता की पूजा से पहले ही विदा होकर यहाँ से चली गई थी। अब इस लड़की को आप डोरा दिलाना चाहती हैं, कहीं यह भी पूजा से पहले ही यहाँ से चली गई तो क्या होगा ?
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इस पर उनकी सास बोली कि तुम्हारी ननद ने अपने घर जाकर पूजा की होगी, क्योंकि मैंने पूजा का सारा सामान उसके साथ रख दिया था। इसी प्रकार यह लड़की पूजा होने तक यदि इसी घर में रहेगी तो हमारे साथ यह भी पूजा में अपने आप ही शामिल हो जाएगी और यदि यह कहीं ओर चली गयी तो वह वहां पर ही पूजा कर लेगी। यह सब बात सुनकर उस लड़की ने भी दशामाता का डोरा ले लिया। नौ दिन तक वह दशामाता की कहानी तथा व्रत पूजन में शामिल होती रही। दसवें दिन लड़की की माता और सभी बहुओं ने सर धोया और स्नान किया। इसके बाद घर में चोका लगाया तथा पूजन की तैयारी करने लगी। उस लड़की ने अपनी भाभियों से पूछा कि यदि यदि घर में कोई पुराना कपड़ा हो तो मुझे भी दे दीजिए जिससे मैं भी स्नान कर लूं। लड़की की भाभियों ने अपनी सास से पूछ कर अपनी ननद की साड़ी उस लड़की को दे दी। अपनी पुरानी साड़ी लेकर वह स्नान करने चली गई और उसने भी सर धोया और स्नान किया, इसके बाद वह साड़ी पहन कर पूजा में सम्मिलित होने के लिए आकर बैठ गई। वह जैसे ही पूजा के लिए बैठी तो बहुओं ने अपनी सास को कहा कि यह तो हमारी दीदी जैसी लग रही है।
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इतना सुनते ही उनकी सास नाराज होकर बोली कि तुम लोगों के मन में जो भी आता है, वह बोल देती हो, तुन लोग पूजा के समय भी शांत होकर नहीं बैठ सकती हो। अब तुम लोग शांत बैठो और मुझे कथा कहने दो। इतना सुनते ही सभी बहुएं शांत होकर बैठ गई। पूजा की समाप्ति पर घर की सभी स्त्रियों ने पारण किया, यह देखकर उस लड़की ने भी पारण किया। इसके बाद सभी स्त्रियां एक-दूसरे का सर गुथने लगी। उस लड़की की एक भाभी ने जैसे ही उस लड़की का सर गुथना शुरू किया तो वह बोली कि जैसी गूँथ तुम्हारे सर में है वैसी ही गूँथ हमारी ननद के सर में भी थी। यह सुनकर सास नाराज होकर बोली कि तुम मेरी बेटी की तुलना इससे क्यों कर रही हो? सास ने अपनी बहू को डाट तो दिया परन्तु बहू की बात से सास के मन शंका होने लगी, इसलिए सास ने उस लड़की से कहा कि आज रात तुम मेरे पास ही सोना। रात को जब सभी बहुएं चिर निद्रा में सो गयी तो उसने लड़की से पूछा कि तुम्हारे पीहर में कभी कोई था या नहीं, तो उस लड़की ने जवाब दिया कि मेरे पांच भाई और भाभियां थी, आपके जैसे मेरे माता-पिता थे।
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उसने फिर पूछा कि क्या हुआ ? इस पर वह लड़की बोली कि मैंने अपने पीहर दशामाता का डोरा लिया था, परन्तु दशामाता के पूजन से पहले ही मैं अपने ससुराल के लिए विदा हो गई और ससुराल में जैसे ही मैं पहुंची तो मेरे गले मैं पड़े डोरे को देखकर वहां की सभी स्त्रियां उसकी हंसी उड़ाने लगी, इससे परेशान होकर मैंने उस डोरे को आग में डाल दिया। उस डोरे के जलने के साथ ही मेरे घर का सारा सामान जलकर भस्म हो गया। मेरे घर के सभी लोग भाग गए, इसके बाद मैं और मेरे पति दोनों भाग कर इस गांव में आ गए। इसके बाद उसकी माँ ने पूछा कि तुम्हारा पति कहा है तो वह लड़की बोली कि वह इसी गाँव में एक लोहार के यहाँ काम करता है। उस लड़की के मूंह से यह सभी बांतें सुनकर उसकी माँ को पता चल गया की यह उसी की बेटी है और दशामाता के प्रकोप के कारण इसकी यह हालत हुई है।
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अगली सुबह होते ही उसने अपने पाँचों बेटों को बुला कर कहा कि यह तुम्हारी छोटी बहन ही है। तुम्हारा बहनोई एक लोहार के यहाँ काम करता है, जाकर उसे ले आओ, माता के कहने पर पाँचों भाई लोहार के यहाँ से अपने बहनोई को लेकर आ गए। इसके बाद उन्होंने उसको स्नान कराया और नए कपड़े पहनने को दिए। कपडे पहन कर वह सुन्दर साहूकार दिखने लगा। वह भी कुछ दिन तक अपने ससुराल में रहा और उसके बाद पुनः अपने घर चला गया। घर पहुंचकर उसने देखा कि उसके घर के सभी लोग पहले की तरह ही सुखपूर्वक रह रहे हैं। कुछ दिन बीतने के बाद वह पुनः अपने ससुराल आया और अपनी पत्नी को विदा कराकर डोली में बिठाकर अपने घर ले आया। मार्ग में आते हुए उसकी पत्नी अपनी दशा पर विचार कर ही रही थी कि उसे एक नदी दिखाई दी, जिसमें कुछ अप्सराये स्नान करके दशामाता का डोरा ले रही थी और उनके पास एक डोरा बच गया था, उन अप्सराओं ने आपस में विचार-विमर्श किया और बोली कि यदि इस डोली में कोई उच्च वर्ग की महिला हो तो हम उसे ये डोरा दे देते हैं। इतना कहकर वे डोली के पास गई और वह डोरा उस लड़की को दे दिया।
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वह लड़की जैसे ही ससुराल पहुँची तो उसने देखा कि द्वार पर उसकी सास थाल सजाकर खड़ी है, ननद कलश लिए और देवरानी-जेठानी अन्य मांगलिक वस्तुएं लिए उसका स्वागत करने के लिए आतुर हैं। अब उस लड़की का भव्य स्वागत किया गया, सभी रीती-रिवाज होने के बाद पहले की भांति लड़की को आसन पर बैठाया गया। आसन पर बैठने के बाद लड़की ने अपनी सास और अन्य लोगों को कहा कि पिछली बार दशामाता के डोरे के लिए आपने जो अपशब्द कहे थे, उसी का यह फल था कि हमारे घर के सब लोग आपस में बिछड़ गए थे तथा घर का सब धन-धान्य जलकर स्वाहा हो गया था। बड़ी मुसीबते उठाने के बाद अब हमारे अच्छे अच्छे दिन आए हैं, तो मेरी आप सभी लोगों से गुजारिश है कि आप में से कोई भी व्यक्ति मेरे इस दशामाता के डोरे का भूल कर भी अपमान नहीं करे, जब मेरा व्रत हो तब सभी लोग श्रद्धापूर्वक पूजा करे। इसके बाद सभी लोगों ने उस लड़की की बात खुशी-खुशी मान ली। इस प्रकार नौ दिनों तक उस लड़की का व्रत चलता रहा और दसवे दिन घर में विधिपूर्वक डोरे की पूजा की गई। इसके बाद सात सुहागिनों को न्योता दिया गया, उनका श्रंगार करके आँचल भरा गया। इस प्रकार दशामाता का पूजन समाप्त हुआ।
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जिस प्रकार दशामाता ने उस लड़की के दिन परिवर्तित किए उसी प्रकार माता सभी पर अपनी कृपा बनाए रखे।
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बोलो दशामाता की जय।
दशामाता व्रत की कथा 2
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प्राचीन काल की बात है एक वृक्ष पर नर तथा मादा दो चिड़ियाएँ रहती थी, उनके कोई भी संतान नहीं थी। इसलिए अन्य पक्षी मादा चिड़िया को बाँझ कहकर चिड़ाते थे और उसे घृणा की दृष्टि से देखते थे।
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मादा चिड़िया बच्चे न होने के कारण बहुत दुखी रहती थी। एक दिन वह कुछ विचार करती हुई अकेली नदी पर पानी पीने चली गई, उसने वहाँ देखा कि कुछ स्त्रियां दशामाता का डोरा ले रही थी। उन स्त्रियों का एक डोरा बच गया, तो वह उसे किसी उच्च वर्ग की स्त्री को देना चाह रही थी, परन्तु वहाँ कोई स्त्री दिखाई नहीं दी जिसे वह डोरा दे सकें तो उन्होंने सोचा कि क्यों न यह डोरा इस चिड़िया के गले में ही बांध देते हैं। यह चिड़ियाँ रोज यहाँ आकर कथा सुन लिया करेगी | हम इसे पूजन की विधि भी बता देंगे, जिससे यह भी पूजन वाले दिन पूजा कर लेगी।
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इसके बाद उन्होंने दशामाता का वह डोरा उस चिड़िया के गले में बांध दिया और उसे समझा दिया कि उसे प्रतिदिन नौ दिनों तक यहाँ आकर दशामाता की कथा सुननी है और दसवें दिन गेहू के इक्कीस दाने लाकर उनमें से एक दाना दशामाता के नाम से नदी में डालना होगा और बाकि बचे 20 दाने स्वयं को खाने होंगे। इस पर वह चिड़िया तैयार हो गई। अब नौ दिनों तक वह चिड़िया नियमपूर्वक दशामाता की कहानी सुनने के लिए वहाँ आने लगी। दसवे दिन उन स्त्रियां के द्वारा बताई विधि के अनुसार चिड़िया ने दशामाता का वह डोरा तथा गेहूं का एक दाना नदी में डालकर पारण किया।
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इसके बाद कुछ दिनों बाद उस चिड़िया के घौसलें में भी नन्हे-मुन्ने चूजों की किलकारी गूंजने लगी, क्योकि उस चिड़िया के भी बच्चे हो गए थे। अन्य चिड़ियाओं को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह तो बाँझ थी, इसके बच्चे कैसे होने लगे ?
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दूसरी चिड़ियाओं ने उससे इसका कारण पूछा तो वह चिड़िया बोली कि जब मुझे बच्चे नहीं होते थे तो तुम सब मुझे बाँझ कहकर चिढाती थी, मुझसे घृणा करती थी, परन्तु अब दशामाता की कृपा से मैं भी माँ बन गई हूँ, मेरे भी प्यारे-प्यारे दो बच्चे हैं। अब उस चिड़िया ने उन दूसरी चिड़ियाओं के पूछने पर दशामाता का डोरा लेने, कहानी सुनने और पूजा करने का सारा वृतांत सुना दिया और पूजा की विधि भी उन्हें विस्तार पूर्वक सुना दी। इसके बाद जंगल की सारी चिड़ियाँ दशामाता का व्रत करने लगी और उन्हें भी दशामाता की कृपा से सारी खुशियाँ मिली।
- बोलो दशामाता की जय।
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