मनसा महादेव व्रत कथा एक समय की बात है, कैलाश पर्वत पर महादेवजी तथा पार्वतीजी विराजे हुए थे। वहां चारो ओर शीतल, मन्द तथा सुगन्धित हवा चल रही थी । चारो ओर वृक्ष की लताओं पर पुष्प तथा फल लदे हुए थे। ऐसे सुहावने मौसम में पार्वतीजी ने महादेवजी से कहा कि हे नाथ ! आज चलो चौसर खेलते हैं। तब महादेवजी ने कहा कि चौसर के खेल में छल-कपट बहुत होता है, इसलिए कोई मध्यस्थ होना चाहिए। महादेवजी के इतना कहते ही पार्वतीजी ने अपनी माया से वहां एक बालक बनाकर बैठा दिया तथा महादेवजी ने अपने मंत्रों के बल से उसमें जान डाल दी। महादेवजी ने उस बालक का नाम अंगद रखा तथा बालक को आदेश दिया कि तुम हम दोनों की हार जीत को बताते रहना। ऐसा कहकर महादेवजी ने चौसर का पाशा चलाया और अंगद से पूछा कि बताओ कौन जीता और कौन हारा है ? तब अंगद ने उत्तर दिया कि महादेवजी आप जीते हैं और पार्वतीजी हारी हैं । इसके बाद महादेवजी ने फिर पाशा फेंका और अंगद से पूछा कि इस बार कौन जीता और कौन हारा ? इस बार भी अंगद ने वही जवाब दिया कि महादेवजी जीते हैं और पार्वतीजी हारी...
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