श्री सूक्त पाठ | Sri Suktam

श्री सूक्त पाठ



श्री सूक्त मंत्र धन की देवी माता लक्ष्मी का प्रिय मंत्र है। इस मंत्र में कुल 16 मंत्र निहित हैं तथा ये सभी मंत्र माता लक्ष्मी को समर्पित हैं। कहते हैं, इस मंत्र का पाठ प्रतिदिन करने से घर में धन की कमी नहीं होती हैं। घर धन-धान्य से भरा रहता है। श्री सूक्त का पाठ शुक्रवार या किसी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है। श्री सूक्त मंत्र का पाठ करते समय देवी लक्ष्मी का फोटो अपने सामने रखें, अपना मुख पूर्व या उत्तर की ओर हो।
॥श्री सूक्त मंत्र प्रारम्भ॥
  • ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
  • चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह॥
  • तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
  • यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्॥
  • अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
  • श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्॥
  • कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
  • पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्॥
  • चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
  • तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥
  • आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
  • तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः॥
  • उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
  • प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥
  • क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
  • अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात्॥
  • गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
  • ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम्॥
  • मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
  • पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः॥
  • कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
  • श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥
  • आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
  • नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥
  • आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्।
  • चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह॥
  • आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
  • सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥
  • तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
  • यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥
  • य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
  • सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्॥
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