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श्री दुर्गा कवच | देवी कवच | Durga Kawach | Devi Kawach

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श्री दुर्गा कवच देवी कवच या दुर्गा कवच के श्लोक मार्कंडेय पुराण के अंदर निहित हैं। यह दुर्गा सप्तशती का हिस्सा है। भगवान ब्रह्मा ने ऋषि मार्कंडेय को देवी कवच सुनाया था। देवी कवच में 47 श्लोक शामिल हैं। इन 47 श्लोकों के पश्चात् 9 श्लोक और हैं, जिनमें फलश्रुति को लिखा गया है। फलश्रुति यह बताती है कि देवी कवच को सुनने या पढ़ने से क्या फल प्राप्त होता है। दुर्गा कवच में भगवान ब्रह्मा द्वारा माँ पार्वती की नौ अलग-अलग दैवीय रूपों में प्रशंसा की गई है। जो भी कोई व्यक्ति इस कवच का नित्य पाठ करता है उसे माँ दुर्गा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। अथ श्री देव्याः कवचम् ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः। ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥ मार्कण्डेय उवाच ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥ ब्रह्मोवाच अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर

श्री दुर्गा माँ की आरती | Durga Maa Aarti

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श्री दुर्गा माँ की आरती जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥ मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को। उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको॥ कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै॥ केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी। सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी॥ कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति॥ शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥ चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे। मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी। आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥ चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू। बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू॥ तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥ भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी। मनवां

श्री दुर्गा चालीसा | Durga Chalisa in Hindi

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श्री दुर्गा चालीसा नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥ तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥ अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥ रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥ धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥ रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥ लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥ क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥ हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात

श्री सूक्त पाठ | Sri Suktam

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श्री सूक्त पाठ श्री सूक्त मंत्र धन की देवी माता लक्ष्मी का प्रिय मंत्र है। इस मंत्र में कुल 16 मंत्र निहित हैं तथा ये सभी मंत्र माता लक्ष्मी को समर्पित हैं। कहते हैं, इस मंत्र का पाठ प्रतिदिन करने से घर में धन की कमी नहीं होती हैं। घर धन-धान्य से भरा रहता है। श्री सूक्त का पाठ शुक्रवार या किसी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है। श्री सूक्त मंत्र का पाठ करते समय देवी लक्ष्मी का फोटो अपने सामने रखें, अपना मुख पूर्व या उत्तर की ओर हो। ॥श्री सूक्त मंत्र प्रारम्भ॥ ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह॥ तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्॥ अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्॥ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्॥ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।

श्री बाँकेबिहारी जी की आरती | Shri Banke Bihari ji ki aarti

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श्री बाँकेबिहारी जी की आरती श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं। हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं॥ आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं। श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं॥ श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं ... मोर मुकुट प्यारे शीश पे सोहे। प्यारी बंसी मेरो मन मोहे॥ देख छवि बलिहारी मैं जाऊं। श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं ... चरणों से निकली गंगा प्यारी। जिसने सारी दुनिया तारी॥ मैं उन चरणों के दर्शन पाऊं। श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं ... दास अनाथ के नाथ आप हो। दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो॥ हरी चरणों में शीश झुकाऊं। श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं ... श्री हरीदास के प्यारे तुम हो। मेरे मोहन जीवन धन हो॥ देख युगल छवि बलि बलि जाऊं। श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं। हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं॥ आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं। श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं॥

श्री कुंजबिहारी पचासा | श्री बाँकेबिहारी पचासा | Kunj Bihari Pachasa | Banke Bihari Pachasa

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श्री बाँकेबिहारी पचासा दोहा बांकी चितवन कटि लचक, बांके चरन रसाल। स्वामी श्री हरिदास के बांके बिहारी लाल॥ चौपाई जै जै जै श्री बाँकेबिहारी। हम आये हैं शरण तिहारी॥ स्वामी श्री हरिदास के प्यारे। भक्तजनन के नित रखवारे॥ श्याम स्वरूप मधुर मुसिकाते। बड़े-बड़े नैन नेह बरसाते॥ पटका पाग पीताम्बर शोभा। सिर सिरपेच देख मन लोभा॥ तिरछी पाग मोती लर बाँकी। सीस टिपारे सुन्दर झाँकी॥ मोर पाँख की लटक निराली। कानन कुण्डल लट घुँघराली॥ नथ बुलाक पै तन-मन वारी। मंद हसन लागै अति प्यारी॥ तिरछी ग्रीव कण्ठ मनि माला। उर पै गुंजा हार रसाला॥ काँधे साजे सुन्दर पटका। गोटा किरन मोतिन के लटका॥ भुज में पहिर अँगरखा झीनौ। कटि काछनी अंग ढक लीनौ॥ कमर-बांध की लटकन न्यारी। चरन छुपाये श्री बाँकेबिहारी॥ इकलाई पीछे ते आई। दूनी शोभा दई बढाई॥ गद्दी स

श्री कुंजबिहारी जी की आरती | Shri Kunj Bihari ji ki aarti

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श्री कुंजबिहारी जी की आरती आरती कुंजबिहारी की। श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ गले में बैजंती माला। बजावै मुरली मधुर बाला॥ श्रवण में कुण्डल झलकाला। नंद के आनंद नंदलाला॥ आरती कुंजबिहारी की ... गगन सम अंग कांति काली। राधिका चमक रही आली॥ लतन में ठाढ़े बनमाली। भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक॥ ललित छवि श्यामा प्यारी की। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की ... कनकमय मोर मुकुट बिलसै। देवता दरसन को तरसैं॥ गगन सों सुमन रासि बरसै। बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग॥ अतुल रति गोप कुमारी की। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की ... जहां ते प्रकट भई गंगा। कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा॥ स्मरन ते होत मोह भंगा। बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच॥ चरन छवि श्रीबनवारी की। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

श्री लक्ष्मी माता चालीसा | Laxmi mata chalisa

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श्री लक्ष्मी माता चालीसा दोहा मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास। मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥ सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार। ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥ चौपाई सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥ तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥ जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥ तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥ जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥ विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥ केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥ कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥ ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥ क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥ चौदह रत्न में तुम सुखरा

लक्ष्मी माता आरती | Laxmi Mata Aarti

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श्री लक्ष्मी माता जी की आरती ॐ जय लक्ष्मी माता। मैया जय लक्ष्मी माता॥ तुमको निशदिन सेवत। हरि विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ... उमा रमा ब्रह्माणी। तुम ही जगमाता॥ सूर्य चन्द्रमा ध्यावत। नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ... दुर्गा रूप निरंजनी। सुख सम्पत्ति दाता॥ जो कोई तुमको ध्यावत। ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ... तुम पाताल निवासिनि। तुम ही शुभदाता॥ कर्मप्रभावप्रकाशिनी। भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ... जिस घर में तुम रहती। सब सद्गुण आता॥ सब सम्भव हो जाता। मन नहीं घबराता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ... तुम बिन यज्ञ न होते। वस्त्र न कोई पाता॥ खान पान का वैभव। सब तुमसे आता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ... शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर। क्षीरोदधि जाता॥ रत्न चतुर्दश त

श्री विष्णु जी की आरती | Vishnu Ji Ki Aarti in Hindi | ओम जय जगदीश हरे आरती | Om Jai Jagdish Hare Aarti

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श्री विष्णु जी की आरती ॐ जय जगदीश हरे। स्वामी जय जगदीश हरे॥ भक्त जनों के संकट। क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश हरे ... जो ध्यावे फल पावे। दुःख बिनसे मन का॥ सुख सम्पति घर आवे। कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश हरे ... मात पिता तुम मेरे। शरण गहूं किसकी॥ तुम बिन और न दूजा। आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश हरे ... तुम पूरण परमात्मा। तुम अन्तर्यामी॥ पारब्रह्म परमेश्वर। तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश हरे ... तुम करुणा के सागर। तुम पालनकर्ता॥ मैं मूरख फलकामी। कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश हरे ... तुम हो एक अगोचर। सबके प्राणपति॥ किस विधि मिलूं दयामय। तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे ... दीन-बन्धु दुःख-हर्ता। तुम रक्षक मेरे। अपने हाथ उठाओ। द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ

श्री विष्णु चालीसा | Vishnu Chalisa in Hindi

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श्री विष्णु चालीसा दोहा विष्णु सुनिए विनय, सेवक की चितलाय। कीरत कुछ वर्णन करूं, दीजै ज्ञान बताय॥ चौपाई नमो विष्णु भगवान खरारी। कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥ प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी। त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥ सुन्दर रूप मनोहर सूरत। सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥ तन पर पीताम्बर अति सोहत। बैजन्ती माला मन मोहत॥ शंख चक्र कर गदा विराजे। देखत दैत्य असुर दल भाजे॥ सत्य धर्म मद लोभ न गाजे। काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥ सन्तभक्त सज्जन मनरंजन। दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥ सुख उपजाय कष्ट सब भंजन। दोष मिटाय करत जन सज्जन॥ पाप काट भव सिन्धु उतारण। कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥ करत अनेक रूप प्रभु धारण। केवल आप भक्ति के कारण॥ धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा। तब तुम रूप राम का धारा॥ भार उतार असुर दल मारा। रावण आदिक को संहारा॥ आप वाराह रूप बनाया।